मैं दिया हूँ
मैं दिया हूँ
अपने गंतव्य की ओर मैं चल दिया हूँ
मैं दिया हूँ
मेरा उद्देश्य तो
अंधेरा होते ही
खुद जलकर प्रकाश फैलाना
दूसरों को राह दिखाना
आजीवन दूसरों का मार्ग प्रकाशित करते करते
अंत में स्वयं बुझ जाना
फिर भी मेरे अंतर की पीड़ा को
किसी ने नहीं पहचाना
लगता है मैं अपनों से ही छल गया हूँ
मैं दिया हूँ
पैर में कांटा न लगे
मनुष्य रास्ता न भटके
इसके लिये मेरे प्रकाश की
और मेरे लिये तेल की जरूरत है
फिर भी चलते समय कोई तेल का नाम ले ले
तो वह अशुभ मुहूरत है
लगता है मैं अपनी ही कालिख से
कुछ गलत लिख गया हूँ
मैं दिया हूँ
मेरी आत्मकथा कल्पित ही सही
पर सही है
हर व्यक्ति को आगे का रास्ता देखने के लिए
मेरी ही लौ जल रही है
मैं अपनी ही लौ में अपने प्राण की
आहुति देकर जल रहा हूँ
मैं दिया हूँ
अपने गंतव्य की ओर मैं चल दिया हूँ
मैं दिया हूँ
़़़़़़़़़ अशोक मिश्र