मैं तो रूह हूँ
मैं तो रूह हूँ
ब्रह्माण्ड की
उड़ती धूल हूँ
कभी कोख में
कभी प्रकाश की जोत में
आकार लेती
मैं धूल हूँ
मैं तो रूह हूँ…
तूने देखा मुझे
नजरों से
छुआ मुझे
अधरों से
शरीर नही
मैं शून्य हूँ
तुझसे अलग नही
मैं तू ही हूँ
मैं धूल हूँ
हर बीज का मैं फूल हूँ
मैं तो रूह हूँ…
आदि से आजाद हूँ
अंत से अनन्त हूँ
ब्रह्माण्ड की गहराइयों से
निकलती नूर हूँ
मैं तेरी हर समझ की
चूक हूँ
मैं धूल हूँ
तेरे हर अस्तित्व की
मैं रूह हूँ…
ना अधिकार है
तुझ पर मेरा
ना आसक्ति है
मुझ पर तेरी
तेरी इस नादानी की
मैं भूल हूँ
तेरे हर अंग के
द्रव्य की मैं झील हूँ
मैं तो रूह हूँ….
तेरी चाहत की
अपेक्षा नही
तेरी नफरत की
नही परवाह
ना मैं ख़ुशी
ना दुखी हूँ
ना मैं प्यास
ना आग हूँ
मैं धूल हूँ
तेरे रोम रोम में बसती
मैं रूह हूँ ………
मैं ही ऊपर
और नीचे भी
मैं ही दायें
और बाएं भी
हर कण हर दिशा
में समायी
ब्रह्मांड की मैं चूल हूँ
मैं रूह हूँ
अनंत में बिखरी धूल हूँ…
भूत-भविष्य और
तेर हर लम्हे की
मैं छाया हूँ
मैं ही प्रकृति मैं ही पुरुष
और इस सृष्टि की आदिमाया हूँ
तेरे हर रूप तेरे हर भाव
की मैं चेतन काया हूँ
मैं धूल हूँ
तेरी सांसों में बसती
मैं तो रूह हूँ……
हर प्रेम का
छितिज हूँ
हर वियोग का
उच्छवास हूँ
वेदना हूँ तेरे अश्क़ों की
तेरे मन में छुपी आस हूँ
मैं रूह हूँ
तेरे जिस्म की मैं धूल हूँ
मैं तो रूह हूँ ………
प्रशांत सोलंकी
नई दिल्ली-07