मैं तो बैंक कर्मचारी हूँ।
तुम सबको क्या लगता है,
मैं पैसों का मालिक हूँ,
लॉकर की चाभी रखता हूँ,
खजाने का वारिश हूँ,
गलत सोचते हो तुम,
मैं तो बैंक कर्मचारी हूँ।
सजग और सचेत रहता हूँ,
इतनी बड़ी जिम्मेदारी है,
न जाने कितनो के सुख-दुःख के लिए,
अपनी नींद गवाँ दी है,
हिसाब किताब सम्हाल कर रखता हूँ,
मैं तो बैंक कर्मचारी हूँ।
सुबह से लेकर शाम तक,
जुझता हूँ थोड़ा तनाव से,
अपनी रोजीरोटी भी चलानी हैं,
धोखाधड़ी से तन्हख्वाह अपनी बचानी हैं,
औरोंं को उनकी अमानत लौटानी है,
मैं तो बैंक कर्मचारी हूँ।
अर्थ रीढ़ की हड्डी होती,
देश के विकास में जरुरी होती,
व्यापार से लेकर शमशान तक,
मानव जीवन में भागीदारी होती,
होती पूंँजी जमा मेरे पास,
मैं तो बैंक कर्मचारी हूँ।
दायित्व मेरा सभी से कम नहीं,
जोखिम होना तो लाजमी है ,
कभी न कभी भूल-चूक भी हो जाती है,
इंसान हूँ कोई मुजरिम नहीं,
झट से दाग लगा देते हो ईमान में,
मैं तो बैंक कर्मचारी हूँ।
रचनाकार-
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर।