मैं तो जीना भी सीख कर आया हूँ
गम की आंधियो से बाहार निकल आया हूँ
तभी तो साहिल के थपेड़ों का हो पाया हूँ
ज़िन्दगी तलाशता रहा मैं तुझे
आज उस तलाश का हीरा बन पाया हूँ
नही परख जमाने को कीमती हीरे की
जमाने की मार से जौहरी बन पाया हूँ
दर्द है मानता हूँ किस्मत में मेरी
ख़ुशी को एक कोने में रख आया हूँ
नही चुभता काँटा भी अब जिस्त में
अब खिलता गुलाब बन कर आया हूँ
बन गया कीमती पत्थर मन्दिर का
नाजाने कितनी दफा गहरी चोट खाकर आया हूँ
नहीं है जीना असां इस दुनिया में
मैं मौत को गले लगा कर आया हूँ
‘दीप’नही आती मौत भी अब बुलाने पर
मैं तो जीना भी सीख कर आया हूँ
-जारी
©कुल’दीप’ मिश्रा