मैं तो कवि हुँ
मैं तो कवि हुँ नित शब्दो से, खिलवाड़ करता हूँ।
अपने तुरीण में साध करके, नए वाण रखता हूँ।।
हास्य हो या व्यंग हो, वो मारक है सारे एक से।
कौतूहल में डाल देंते, बढ़के हैं विधाएं अनेक से।।
फाड़ देते है कलेजे, दर्द के जब क्षार रखता हूँ।
मैं तो कवि हुँ नित शब्दो से, खिलवाड़ करता हूँ।
होते सुकोमल गीत भी, करता हृदय से प्रीत भी।
रचना में मेरे प्रेयसी और, होते उनके मीत भी।।
पर खली जब कोई दिखता, चीत्कार करता हूँ।
मैं तो कवि हुँ नित शब्दो से, खिलवाड़ करता हूँ।
वीरता भरे शब्दों से सबकी, बाजुऐं जाती फड़क।
क्लांत दुश्मनो के भय से, धड़कने जाते है धड़क।।
सोएं हुवे आकांक्षाओ पे, पल में उद्गार भरता हूँ।
मैं तो कवि हुँ नित शब्दो से, खिलवाड़ करता हूँ।
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित ०२/०१/२०१९)