मैं तो आखर प्यार पढूँ
झूठ का कारोबार पढूँ
मतलब का संसार पढूँ
लफ़्ज़ों को तलवार पढूँ
आग लिखूँ अंगार पढूँ
वो कहता इन्कार पढूँ
लेकिन मैं इक़रार पढूँ
कितने घायल होते हैं
आँखों को औज़ार पढूँ
तू है सागर की कश्ती
ख़ुद को मैं पतवार पढूँ
पोथी-पाती में क्या है
मैं तो आखर प्यार पढूँ
इतना पागल मत समझो
मन्दी को रफ़्तार पढूँ
सब्र करो हर शख़्स कहे
धोका सौ-सौ बार पढूँ
सच्चा किस्सा ले आओ
झूटा क्यों अख़बार पढूँ
चारों ओर नज़ारें हैं
बस तेरा दीदार पढूँ
सब क्या जाहिल आवारा
‘आनन्द’ को होशियार पढूँ
डॉ आनन्द किशोर