मैं तेरे दर्पण की छाया हूँ
मैं तेरे दर्पण की छाया हूँ
मैं तेरे ख़ातिर आया हूँ
चूड़ी कंगन हार महावर
चार खिलौने मैं लाया हूँ
क्या दुनिया की रीत भुला दूँ
आ तुझको दो घूँट पिला दूँ
अंगारों पर हाथ जला दूँ
छंद, ग़ज़ल कुछ गीत सुना दूँ
ज़ुल्फ़ों में इक फूल लगा दूँ
रंगों की बौछार उड़ा दूँ
दुनियादारी को बहला के
पहली सफ़ में मैं आया हूँ
आ मेरी बाहों के घेरे
पूरे हो जाएँगे फेरे
दिल जलता है शाम सवेरे
भीगी पलकें रैन-बसेरे
मेरी पलकें आँसू तेरे
छा जाएँ फिर लाख अँधेरे
पत्थर पर घिसकर क़िस्मत को
क्या मैं तुझको अब भाया हूँ ?
मैं दे सकता सूखी रोटी
काम बहुत हैं उम्रें छोटी
जीवन है चौसर की गोटी
अपनी तो है क़िस्मत खोटी
लहज़ा ताज़ा बासी रोटी
कौन समझता बात है मोटी
हीरे-मोती, चाँदी-सोना
इन से बेहतर मैं लाया हूँ
पहली सफ़ की फ़ुर्सत हो तुम
एक पुरानी आदत हो तुम
इक रांझे की हसरत हो तुम
ख़्वाब में पाई दौलत हो तुम
राम दुहाई ख़ल्वत हो तुम
मेरी पहली उल्फ़त हो तुम
अब तो जानाँ मान भी जाओ
लाख जतन कर के पाया हूँ
पेड़ परिंदें एक कहानी
पास में है दरिया का पानी
ज़ुल्फ़ें धोती धूप सुहानी
मैं राजा तू मेरी रानी
मीत, ग़ज़ल का तुम हो सानी
सैर करे हम दोनों यानी
नन्ही-मुन्नी ख़ुशियाँ मेरी
इससे ज़्यादा क्या पाया हूँ
गीत ग़ज़ल है मेरा पेशा
इन में ही गुज़रा है लम्हा
मीत, निभा लोगे तुम रिश्ता
प्रेम का दूजा नाम भरोसा
जीने का आसान सलीक़ा
बन जाऊँगा एक फ़साना
पेशानी पर उगने वाले
काँटें दफ़ना कर आया हूँ