“मैं तेरी शरण में आई हूँ”
“मैं तेरी शरण में आई हूँ”
जिंदगी के सवालों का जवाब मांगती,
जो हकीकत में बयां ना हो सकी,
वो फरियाद लेके आई हूं।
मैं तेरी शरण में शीश झुकाने आई हूं।
कुछ कमियाँ गिले शिकवे शिकायतों को,
दूर करना चाहती हूँ।
ना जाने कब क्यों वही पुरानी बातों का ,
सिलसिला चलता रहा उसे भूला देना चाहती हूँ।
मैं तेरी शरण में शीश झुकाने आई हूं।
जिंदगी दो दिन की फिर भी क्यों ना जाने,
नाखुश होकर घुट घुट के जीते हुए,
सारी खुशियाँ मुठ्ठी भर जी लेते हुए ,
क्यों खफा सा रहे उदासी से भरे हुए,
आखिर एक दिन चले जाना है ,
अकेले ही आए अकेले ही मर जाना है।
मैं तेरी शरण में आई हूँ भगवन ,
अब तू ही एक सहारा है ,
शीश झुकाते विनती करती शशि दासी,
अपनी भूल चूक क्षमा याचना ,
माँगने द्वार तिहारे चली आई हूँ।
मैं तेरे चरणों में शीश झुकाने आई हूं।
शशिकला व्यास शिल्पी ✍️