मैं तुलसी….
मैं तुलसी….
मैं तुलसी माँ के आंगन की
तुझ संग ब्याह यहाँ सज गयी
निंबोलियाँ सहेलियाँ सब बिछड़ी
बाबुल का चौबारा भी तज गई
लक्ष्मी स्वरूपा मैं हरिप्रिया
तुम विष्णु से करुणा भंडार
स्वयं किया तुमको समर्पण
प्रिय तुम जीवन का सार
संस्कारों की बूंदों से सींचा
शालीनता की धूप मली
आस्था की डोर से बाँध
ममता से लहलहा खिली
माटी की सोंधी ख़ुशबू सी
मैं घुल गई तेरे मन जीवन
निज वहन किया हर संकट
सुख समृद्धि खेले मेरे प्रांगण
सौम्य सरल शांत गुणवत्ता
एषणा न विषाद न सिसकी
सप्तपदि के संकल्प से जुड़ी
मैं तुलसी तेरे आंगन की
रेखा
कोलकाता