मैं तुम हम अभी जवां जवां
मैं-तुम-हम अभी जवां जवां
जिन्दगी भी है आब-ए-रवाँ
उम्र की छाप नहीं दिख रही
ताजगी जीवन में अभी यहाँ
बेशक आजीवन रहे जटिल
मुस्कराते रहे हम यहाँ-वहाँ
दुखों में जहाँ रहें हम जुझते
सुखसागर में डूबते रहे यहाँ
जिंदगी बहती रही दरिया सी
साहिल भी मिलते रहे हैं यहाँ
गम का सागर है यह जिन्दगी
हर्षित लहरें मिलती रहीं यहाँ
जब कभी अधर रहे सुर्ख से
रहे आँसुओं में भीगते यहाँ
मौसम कितना भी हो बेरुखा
रंग जीवन के मिलते रहे यहाँ
नागिन सी काली चाहे रात थी
चाँद सदैव चमकता रहा यहाँ
मैं- तुम- हम अभी जवां जवां
जिन्दगी भी रही आब-ए-रवाँ
-सुखविंद्र सिंह मनसीरत