*मैं तुम्हें बुद्धिमान बना दूँगा*
तुम यत्न करो बढ़ने का,
मैं नित नयी गंग बहा दूँगा|
तुम अपने मन आयाम कहो,
मैं नये संचार उन्हें दूँगा||
तुम यत्न जन-निर्वाह करो,
मैं नित नये महल गढ़ा दूँगा|
तुम बाग बनो फल फूलों के,
मैं सुगंध और रस भर दूँगा||
तुम नदी-झरने हिमेन्द्र बनो,
मैं चाल, वेग दृढ़ वर दूँगा|
तुम तारे दिनु व इन्दु बनो,
मैं आभा सुदृढ़ कर दूँगा||
तुम गुण का गुणगान करो,
मैं तुम्हें गुणवान बना दूँगा|
तुम आदर और सम्मान करो,
मैं तुम्हें स्वयं मान बना दूँगा||
तुम सब बाल बलवान बनो,
मैं सर्व शक्तिवर वर दूँगा|
तुम शिष्य ‘मयंक’ मैं शिक्षक हूँ,
मैं तुम्हें बुद्धिमान बना दूँगा||