मैं तुमको क्या कहूँ
मैं तुम्हे क्या कहूँ
कभी मन करता है
मैं धरती हो जाऊं
और तुमको चाँद कहूँ
पर वो तो
रात में ही निकलता है
और मेरा मन
हर पल तुम्हे
देखने को
मचलता है….
मैं तुम्हे क्या कहूँ
कभी मन करता है
मैं नदी हो जाऊं
और तुमको सागर कहूँ
पर वो तो
हर नदी को समेटता है
और मेरा मन
ये देख कर
बहुत जलता है…
मैं तुम्हे क्या कहूँ
कभी मन करता है
मैं रोशनी हो जाऊं
और तुमको दीपक कहूँ
पर वो तो
बाती संग जलता है
ये देख मन
आहें भरता है
मैं तुमको क्या कहूँ….
सीमा कटोच