मैं तुझसे मिलने का, कोई बहाना ढूढ लेता हूँ …
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हज़ज मुसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222 1222
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मैं तुझसे मिलने का, कोई बहाना ढूढ लेता हूँ
घने जंगल गड़ा- भूला, खजाना ढूंढ लेता हूँ
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सितम – जुल्मों बनी, तेरी गली, लेकिन जुदा हो के
नसीबो में लिखा ,अपना ,खजाना ढूंढ लेता हूँ
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न भाये है,हमें तारीफ के, पल से गुजरना भी
शराफ़त से झुकाने सर, बहाना ढूंढ लेता हूँ
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अगर नजदीक आ ,जाना दूर था, तुमको क़िसी काऱण
वजह पूछे बिना भी मैं, फसाना ढूंढ लेता हूँ
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अगर मानिंद करवट, वक्त बदले ,कहीं किस्मत
मै पेचो ख़म में, कतरन- खत पुराना ढूंढ लेता हूँ
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मुझें बेकार समझे, भूल बैठे, तुम भले लोगो
कदर पाने, कहीं महफिल, ठिकाना ढूंढ लेता हूँ
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छिपाओ लाख, बादल- बिजलियां ,खुशबुओं को तुम भी
हकीकत कहते जुमलों में, ज़माना ढूंढ लेता हूँ
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सुशील यादव