मैं तन्हा
रवि शंकर साह ‘” बलसारा”
मैं जब कभी भी तन्हा होता हूँ।
या बैठा रहता हूँ तन्हा अकेला ।
मैं मन से मन की बातें करता हूँ।
तब सिर्फ तुम ही याद आती हो।
याद आती है तुम्हारा वो प्यार ,
जिसे कभी मैं भूला नहीं सकता ।
गुलाब की सूखी पंखुड़ियों पर लिखे
मेरे नाम के आधे-अधूरे हिज्जे ।
मैं भूल नहीं सकता हूँ वो
खून से लिखे हुए रक्तिम लाल खत
नदियों के तटों पर का मिलना
दिन दिन भर मेरा इंतज़ार करना।
कुछ हो जाता था अगर मुझे तो,
मेरे नाम का वो उपवास रखना,
मंदिर- मंदिर में मन्नत मांगना।
मंदिरों के घण्टियों का बजाना।
मुझे याद है,तुमसे मिलने की तड़प,
और तेरी घर के देहरी पर भाई के पहरे
जहां कैद हो जाती मेरी हर परछाई।
तेरे दीदार को गलियों पर भटकना।
आज क्या कुछ नहीं है मेरे पास
घर- गाड़ी,धन-दौलत, प्रेम-मुहब्बत,
अब तो ना पहरे हैं ना कोई रोक-टोक,
यदि आज कुछ नहीं है,तो वह मेरी दीवानगी।
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©®सर्वाधिकार सुरक्षित- रवि शंकर साह
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