मैं झूठा हूँ, भीतर से टूटा हूँ।
मैं झूठा हूँ, भीतर से टूटा हूँ।
मैं आलसी, बेबस मानुष हूँ।।
मैं खुश को ना:खुश कर भी दूँ,
मैं पाक़ नहीं, मृगतृष्णा हूँ,
मैं सोचता हूँ, मैं मानुष हूँ।
क्यूँ सोचता हूँ, मैं मानुष हूँ।।
मैं झूठा हूँ, भीतर से टूटा हूँ।
मैं आलसी, बेबस मानुष हूँ।।
मैं खुश को ना:खुश कर भी दूँ,
मैं पाक़ नहीं, मृगतृष्णा हूँ,
मैं सोचता हूँ, मैं मानुष हूँ।
क्यूँ सोचता हूँ, मैं मानुष हूँ।।