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4 Feb 2017 · 1 min read

मैं जो रूठा, वो भी रूठ गए

ख्वाब नाजुक थे, टूट गए…..
लो नींद से हम, उठ गए……

फिरा करते थे “गुल” के इर्द गिर्द
वो गलियाँ अब, हमसे छुट गए…..

नज़रे मिले, मुस्करा भी दिये
हमदर्दी कैसी, जब पतंग लूट गए……

मुमकिन नही अब रो भी पाएंगे
मैं जो रूठा, वो भी रूठ गए…….⁠⁠⁠⁠

Basant_Malekar

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