मैं जिंदा होकर मजार हूं
दोस्तो,
एक ताजा गज़ल आपकी नज़र ,,,,!!
गज़ल
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मै जिंदा होकर भी मजार हूं,
आज मै खुद से ही, बेजार हूं।।
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जहां ज़मीर जो,अपना बेचता,
मै वो बदनशीब सा बाजार हूं।।
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जलते है लोग गम-ऐ-हाल मे,
कैसे बुझाऊं,मै खुद आज़ार हूं।।
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ना गिरे जो ओरो की नज़र से,
मै करता उन्ही का, इंतजार हूं।।
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जिनको भी कहा है सच मैने,
लगा उन्ही को मै बुरा हजार हूं।।
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उजड़ा हुआ चमन था “जैदि”,
लो आज मै फिर से गुलजार हूं।।
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मायने:-
बेजार:-परेशां
आज़ार:-आग
गुलजार:-खिला हुआ बगीचा
शायर:-“जैदि”
एल.सी.जैदिया “जैदि”हूं