मैं जब भी चाहूं मैं आज़ाद हो जाऊंगा ये सच है।
मैं जब भी चाहूं मैं आज़ाद हो जाऊंगा ये सच है।
मगर मैं ये कभी कर ही नहीं पाऊंगा ये सच है।
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जमाना आएगा समझायेगा देगा तसल्ली पर।
मैं तन्हाई में अपने घाव सहलाऊंगा ये सच है।
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बहुत मेले,बहुत ठेले,बहुत महफ़िल बहुत जलसे।
मगर इक दिन अकेला खुद को ही पाऊंगा ये सच है।
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अभी तुम ठोकरों पे ठोकरे दो मुझको गिरने दो।
मैं चलना सीख ही लूंगा सम्हल जाऊंगा ये सच है।
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मैं खुद को पाक कहता हूं मैं खुद को साफ कहता हूँ।
ये दुनियाँ बदलेगी मुझको बदल जाऊंगा ये सच है।
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अभी तो कारवां में हूँ अभी खुद कारवां हूँ मैं।
मगर चुपके से इक दिन मैं निकल जाऊंगा ये सच है।
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“नज़र” तारीफ से बचता हूँ शरमाता हूँ पर इक दिन।
मैं खुद से खुद को ही जयमाल पहनाऊंगा ये सच है।