मैं छोटी नन्हीं सी गुड़िया ।
गीतिका-आधार छंद चौपाई
मैं छोटी नन्हीं सी गुड़िया ।
सब कहते जादू की पुड़िया।
तुतला कर करती हूँ बातें,
हिन्दी लगती है तब उड़िया।
छोटे-छोटे बाल घनेरे,
छोटी-छोटी मेरी चुटिया।
उधम मचाती दिन भर इतना,
खड़ी हुई है सबकी खटिया।
मैं पापा की राज दुलारी,
मुझ में बसती उनकी दुनिया।
नई शरारत हर पल करती,
पर मम्मी को लगती बढ़िया।
मैं मम्मी के जैसी दिखती,
जब भी ओढ़ूँ हरी चुनरिया।
चूड़ी बिंदी पायल साड़ी,
पहन बनी छोटी दुलहनिया।
दादी मुझ से लाड़ लड़ाती
मैं दादा की प्यारी मुनिया।
दादी की ऐनक को पहने,
झुक कर चलती जैसे बुढ़िया।
दिन भर उधम मचाती रहती,
सब कहते मुझको चुलबुलिया।
हरपल खिलखिल हँसती रहती,
बनी लाडली सबकी बिटिया।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली