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22 Jul 2023 · 1 min read

मैं चुप हूँ

मैं बोलती
अगर अस्मत लुटी औरतें
फिर से
पा सकतीं सम्मान
मैं बोलती
अगर मेरे बोलने से
भर जाते बिल्किस के घाव
मैं ज़रूर बोलती…
मैं बोलती अगर मेरे बोलने से
उन हज़ारों बेबस औरतों को
नोचने वाली भीड़ पर
होता थोड़ा सा भी असर
या जिन हाथों में सौपीं थी
देश की कमान
उनके कानों पर जूं भी रेंगती
तो मैं ज़रूर बोलती
मैं औरत हूँ
जानती हूँ …
अनचाहे स्पर्श के घाव
डर, बेबसी, घुटन
स्वयंम में मरती आत्मा का अंधकार
सब जानती हूँ
इस लिए चुप हूँ
सब चुप हैं
न्याय क्या देगा ?
पुनर्जीवन?
स्वाभिमान?
आत्माभिमान?
कुछ भी नहीं…
पर काश !
हमारा संविधान
इसे रोकने की क्षमता रखता
तो ये न होता
अगर न होती बाँटने की राजनीति
तो ये न होता,
अगर न होती सत्ता की हवस
तो यूँ सरेआम
नहीं रेती जातीं स्त्रियां,
न उनसे छिनता
उनका स्त्रीत्व
और न ही हमारा आज
इतना घिनौना होता
क्या बोलूँ
जो सब ठीक हो जाए
क्या लिख दूँ
के घाव भर जाएँ
बस इसिलए
मैं चुप हूँ

Language: Hindi
Tag: Poem
1 Like · 172 Views
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