मैं चलता रहा हूँ…..
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मैं चलता रहा हूँ
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मैं चलता रहा हूँ मैं चलता रहूँगा
सत न्याय को धर्म कहता रहूँगा ।
अमन हो ना जबतक तड़पता रहूँगा
समर के तपिश को मैं सहता रहूँगा ।।
खुशहाल हो जाय जबतक ना जीवन
मैं तबतक निरंतर मचलता रहूँगा ।
अरुण जिंदगी ये तपस्या बड़ी है
कहो सामरिक सा मैं बढ़ता रहूँगा ।।
मैं चलता रहा हूँ मैं चलता रहूँगा……..
है मस्तक मनुज का अँधेरे में अबतक
मैं सत्पथ सफ़र का दिखता रहूँगा ।
ये दीपक जला है जला ही रहेगा
मैं हर पल नजर में सुलगता रहूँगा ।।
मैं जलता रहा हूँ मैं जलता रहूँगा…….
जगत ने सहर को तो देखा नहीं था
मैं दर्पण लिए सब दिखता रहूँगा ।
मैं गीतों की सरिता बहाता रहूँगा
मैं सबको समंदर ही कहता रहूँगा ।।
मैं गाता रहा हूँ मैं गाता रहूँगा………
अरे सरफिरों फिर से फेरो दिशा को
सभी सामरिक को तू जीना सीखा दो ।
सुनो तुम ना जाना कभी भी तिमिर में
मैं हर जिंदगी को सजाता रहूँगा ।।
सजाता रहा हूँ सजाता रहूँगा……….
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-(सामरिक अरुण NDS)
जिला प्रभारी देवघर
31मई 2016
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