मैं चराग हूँ
डूब मरने की हसरत है मेरे दिल में ,
अब लहरों से मेरा वास्ता क्या?
नफ़रत का नकाब है अब तेरे रुख पर,
फिर हाथों मेें गुल क्या, गुलदस्ता क्या?
लौट रही थी मेरी खुशिया मेरे चौखट से,
अब मैं रोता क्या और हसता क्या ?
रूह का रेजा रेजा नीलाम कर दिया है
हमने तुझ पर,
क्या पुछता तेरे इश्क़ मेें महंगा क्या
और सस्ता क्या?
मैं चराग हूँ भटक रहा हूँ खुद के तले
अंधेरों में ,
कोई बताए की निकलने का है कोई
रास्ता क्या?
-के. के . राजीव