मैं गुड्डी मन की मतवाली
घटा भी मुझसे पूछे,
कहो क्या राह तुम्हारी,
हवा भी मुझसे पूछे,
चलूँ क्या साथ तुम्हारी,
खगवृंद बोले मुझसे ,
बन जा तू सखिया हमारी,
उसके चित में मैं बसने वाली, मैं गुड्डी मन की मतवाली ।
है न किसी से राग-द्वेष
है न किसी से घृणा कलेश,
अहंकार तिरस्कार न मेरा वेश,
जन-जन बांटूँ स्व संदेश,
सब मिल गाऐं राग श्लेष,
स्वछंद गगन में उड़ने वाली, मैं गुड्डी मन की मतवाली ।
मेरी चंचलता आए न तुझे रास,
फिर भी हूँ न तुझसे निराश,
मैं भी , जानूँ रे तू मानव,
कुंठित पथ पर चलने वाला,
स्व मदिरा घट पीने वाला,
तू क्या जाने खुशहाली, मैं गुड्डी मन की मतवाली ।
मत सोचो मैं बाल-खिलौना,
प्रमुदित करूँ जग कोणा कोणा,
मत समझो, आता जादू-टोना,
निश्छलता से धोऊँ रोना-धोना,
तुझे पता क्या मेरा होना,
मुझमें ऐसी बात निराली, मैं गुड्डी मन की मतवाली ।
करो न मेरा उम्र आंकलन,
क्या बूढ़ा, क्या हो बचपन,
कभी किसी से करलूँ अनबन,
फिर हंस दूँ तत्काल उसी क्षण,
बिन घुंघरू नाचूँ छन्न- छन्न ,
पतली सूत्र पर उड़ने वाली, मैं गुड्डी मन की मतवाली ।
जग को मैं आकाश दिखाऊँ,
तू भी उड़ सकता एहसास दिलाऊँ,
दृढ चंचल सा नेह पिलाऊँ,
बन पारस, स्वर्ण सा चमकाऊँ,
भटके राही को राह दिखाऊँ
जलाश्रित चित छूने वाली, मैं गुड्डी मन की मतवाली ।
कागज की गुड्डी गगन को छू ले,
तू मानव क्यों कर्म पथ को भूले,
मूड़ पीछे क्यों सिर को धूने,
ले, संकल्प सदा हम बढ सकते हैं,
काले बादल गगन से फट सकते हैं
चिरकुट से छिटके सूरज की लाली, मैं गुड्डी मन की मतवाली ।
पराधीन हूँ जग में आकर,
भूल गई सृष्टि से भा कर,
बस धागे का था साथ हमारा,
पर्वत ,निर्झर, सागर नागर,
मैं उनकी, वो बने हमारे,
है मानस पर राज निराली,मैं गुड्डी मन की मतवाली ।
तुम हो मनुज स्वतंत्र धरा का,
छोड़ा धैर्य क्यों सोच जरा-सा,
विवश स्थूल बन खड़ा पराधीन,
देख चाह हमारी ,इस धरा की,
विलख रहा क्यों बनकर दीन
कटकर भी मैं हँसने वाली, मैं गुड्डी मन की मतवाली ।
-उमा झा