मैं गीत प्रेम के गाऊँगा
साथी मुझको ताने ना दो,
गीत खुशी के गाने ना दो।
क्यों ?पीडा तुम्हें बताता हूँ ,
ओर गीत वफा के गाता हूँ।
एक दिन मैं भी तुमको,
मस्ती के फ्रेम दिखाऊंगा।
छोड़ करुण की धारा को,
मैं गीत प्रेम के गाऊगा।
पहले भूखो की भूख मिटा दूँ ,
मुर्दा में भी हूक उठा दूँ।
दुश्मनको दो टूक बता दूँ ,
गुनहगारो को तो सजा दूँ।
कायरो में उत्साह जगा दूँ।
फिर देखो क्या नही कर पाऊगा।
छोड विरह के गीत सदा ,मैं गीत प्रेम….
अभी डर में लोग यहां जीते है ,
आब छोड़ आँसू पीते है।
जख्म फटे ऊनको सीते है।
भरे हुए कष्टो से लबालब ।
सुख से लगते रीते हैं।
बदल दर्द को हंसी लबो को,
जब मैं दे पाऊंगा।
छोड़ करूण की .. . .
अभी व्याप्त भ्रष्टाचार यहां ,
देशभाव शिष्टाचार कहां।
दिखता सब और कदाचार यहां ,
पसरा है व्यभिचार महा।
अनाचार से सदाचार की, पीडा क्या मैं सह पाऊगा।
छोड करूण की . . . .।
अभी यहां महामारी सी,
फैली बेरोजगारी जी।
मेरे लाल को काम दिला दो ,
कहती माँ दुखियारी जी।
यही हाल तो मुझे लगे है,
सुनामी से भारी जी।
ऐसे मैं बतला साथी , क्या चैन से जी पाऊँगा।
नही नही अभी नही, फिर कभी सही,
मै गीत प्रीत के गाऊगा।
छोड करूण . . . .
महगांई बढ़ती सुरसा सी ,
तन्हाई छाई तुलसा सी।
बढती जाती है जलसा सी,
खुशियां लगती है तमसा सी।
फिर चैन कहाँ से मेरे प्यारे,
अनुभव मै कर पाऊँगा।
इन सबको मिटने तो दे।
मैं गीत प्रेम के गाऊगा।
***मधु गौतम****