खुदा से एक सिफारिश लगवाऊंगा
खुदा से एक सिफारिश लगवाऊंगा,
समय को मोड़ने की घड़ी बनवाऊंगा !
पुरानी यादें ,पुराने लम्हे ,पुराने यारों को,
एक बार फिर से मैं पुनः समेट पाऊंगा !!
गुजरे पुराने हंसी लम्हों का सामना,
चल रहे आज के वक्त से कराऊंगा !
वक्त के पहिए के चलते मुड़े जो राहों में,
उन दोस्तों को फिर से अपना बनाऊंगा !!
जिनको अपना बनाने की हसरत रह गई ,
वक्त को रोक ,एडिट का बटन दबाऊंगा !
वक्त को फिर अपने अनुकूल चलाऊंगा
जो थी अधूरी दास्तां ,पूरी कर जाऊंगा !!
ना काम की थी चिंता ,ना था डर कोई
बचपन के वो लम्हे याद में फिर लाऊंगा !
मां की गोद में अपना हुकुम चलाऊंगा,
पिता के कंधों पर दुनिया घुम आऊंगा !!
बुजुर्ग हो गई मां,पिता को कम दिखता है
अब पूरी दुनिया उनको कैसे दिखाऊंगा !
वक्त के कुछ लम्हे रोक दो, और कुछ देर
मां-बाप की हसरतें में पूरी कर जाऊंगा !!
अंतिम पंक्ति की थी यारों की टोलियां ,
उनको मैं व्यस्तता की दास्तां सुनाऊंगा !
उनके गम जानूंगा कुछ अपने बताऊंगा
छोटी-छोटी बातों पर फिर से हंसाऊंगा !!
जो यादों में बसर करते थे कभी मेरे,
उनका सामना हकीकत से करवाऊंगा !
बारिशों का मौसम आने दो एक बार
ना बचाऊंगा भीगने से ,भीग जाऊंगा !!
खुदा से एक सिफारिश लगवाऊंगा ,
समय को मोड़ने की घड़ी बनवाऊंगा !
पुरानी यादें ,पुराने लम्हे ,पुराने यारों को,
एक बार फिर से मैं पुनः समेट पाऊंगा !!
✍कवि दीपक सरल