Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
9 Jun 2024 · 2 min read

मैं ख़ुद डॉक्टर हूं” – यमुना

मैं ख़ुद डॉक्टर हूं” – यमुना

सदियों से यमुना और कारखानों के बीच के संबंध बिगड़ते जा रहे हैं। शायद वैश्वीकरण ने यमुना के उपकारों को भुला दिया है। यमुना को इस बात से अधिक हैरानी नहीं हो रही होगी जितनी कि इस बात से होती होगी कि इंसान भी उसके उपकारों को भूलता जा रहा है। यमुना का जन्म हिमालय क्षेत्र में होता है, जहाँ उसका रूप स्वर्गलोक की अप्सराओं से कम नहीं है। मनुष्य के संपर्क में आते ही उसे विभिन्न प्रकार की बीमारियों का सामना करना पड़ता है। इतनी अपार संपदा होने के बाद भी यमुना के पास एक अच्छे अस्पताल में स्वयं का इलाज़ कराने का कोई विकल्प नहीं है। यमुना मनुष्य के एक गुण से बेहद प्रभावित होती है। मनुष्य ने यमुना को न केवल उसके अच्छे समय में बल्कि उसके बुरे समय में भी उसका साथ दिया। अपने शुरुआती दिनों में यमुना का स्वरूप बेहद शानदार था। उसकी अपार संपदा के कारण मनुष्य का बहुत प्रेम भी मिलता था। धीरे-धीरे वह मनुष्य के सुख-दुख में उसकी साथी बन चुकी थी। उसने मनुष्य को वैश्वीकरण के लिए प्रोत्साहित भी किया – किसानों को उनके खेत के लिए और मछुआरों को उनकी मछलियों के लिए। बड़े कारखाने के मालिकों के लिए उनके जहरीले उत्पादन के लिए भी।

आज भी यमुना की इतनी दुर्दशा होने के बाद भी मनुष्य उसका साथ नहीं छोड़ता। कुछ समाजसेवी यमुना में बह रहे प्लास्टिक को नदी से निकालते हैं और फिर उसे बेचते हैं। यमुना की ममता तो देखिए, लेकिन इस स्थिति में भी मनुष्य अपना लाभ ही देख रहा है। यमुना इसे मनुष्य का प्यार समझ बैठी है। प्रशंसा नहीं तो आलोचना भी नहीं। आज यमुना के खराब पानी के कारण मनुष्य के स्वास्थ्य पर बेहद बुरा प्रभाव पड़ा है। यह प्रभाव उन लोगों पर भी है जो यमुना से बहुत दूर रहते हैं। सब्जियाँ तो खाते ही होंगे। कुछ लोगों पर इसका सर्वाधिक प्रभाव देखने को मिला है, जो इसके जल को ग्रहण करते हैं। परंतु लोगों ने इसकी जिम्मेदारी ली। सरकार द्वारा कुछ प्रतिबंध लगाए गए, जिससे कुछ राहत मिली।

हमें यह जानना चाहिए कि यमुना ख़ुद क्या चाहती है। विगत कुछ वर्षों पहले वैश्विक महामारी से हमें एक चीज़ सीखने को मिली कि प्रकृति स्वयं एक डॉक्टर है और वह तब कार्य करती है जब उसे मनुष्य का हस्तक्षेप न मिले। यदि हम यमुना के कार्यों में हस्तक्षेप न करें तो शायद फिर से यमुना अपना यौवन काल देख सकेगी। यदि हम अपनी पूजा-पाठ को विराम दें तो वही यमुना की सच्ची पूजा होगी। इस बार हमें यमुना को कुछ समय अकेले बिताने देना चाहिए।

बिंदेश कुमार झा

93 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
सफर कितना है लंबा
सफर कितना है लंबा
Atul "Krishn"
मानते हो क्यों बुरा तुम , लिखे इस नाम को
मानते हो क्यों बुरा तुम , लिखे इस नाम को
gurudeenverma198
रहे सीने से लिपटा शॉल पहरेदार बन उनके
रहे सीने से लिपटा शॉल पहरेदार बन उनके
Meenakshi Masoom
*ट्रस्टीशिप विचार: 1982 में प्रकाशित मेरी पुस्तक*
*ट्रस्टीशिप विचार: 1982 में प्रकाशित मेरी पुस्तक*
Ravi Prakash
शेर-शायरी
शेर-शायरी
Sandeep Thakur
इंसान
इंसान
Bodhisatva kastooriya
👌आभार👌
👌आभार👌
*प्रणय*
बुरा लगे तो मेरी बहन माफ करना
बुरा लगे तो मेरी बहन माफ करना
Rituraj shivem verma
International Camel Year
International Camel Year
Tushar Jagawat
आधा - आधा
आधा - आधा
Shaily
बुंदेली दोहा प्रतियोगिता-139 शब्द-दांद
बुंदेली दोहा प्रतियोगिता-139 शब्द-दांद
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
प्रेरणा
प्रेरणा
Dr. Pradeep Kumar Sharma
"दोस्ताना "
DrLakshman Jha Parimal
किसी भी वार्तालाप की यह अनिवार्यता है कि प्रयुक्त सभी शब्द स
किसी भी वार्तालाप की यह अनिवार्यता है कि प्रयुक्त सभी शब्द स
Rajiv Verma
तुमसे अक्सर ही बातें होती है।
तुमसे अक्सर ही बातें होती है।
Ashwini sharma
"इतिहास"
Dr. Kishan tandon kranti
मेरी फितरत है बस मुस्कुराने की सदा
मेरी फितरत है बस मुस्कुराने की सदा
VINOD CHAUHAN
आग से जल कर
आग से जल कर
हिमांशु Kulshrestha
4192💐 *पूर्णिका* 💐
4192💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
कुछ राज़ बताए थे अपनों को
कुछ राज़ बताए थे अपनों को
Rekha khichi
कौन कहता है कि अश्कों को खुशी होती नहीं
कौन कहता है कि अश्कों को खुशी होती नहीं
Shweta Soni
टूटकर, बिखर कर फ़िर सवरना...
टूटकर, बिखर कर फ़िर सवरना...
Jyoti Khari
मातर मड़ई भाई दूज
मातर मड़ई भाई दूज
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
चोंच से सहला रहे हैं जो परों को
चोंच से सहला रहे हैं जो परों को
Shivkumar Bilagrami
सपनें अधूरे हों तो
सपनें अधूरे हों तो
Sonam Puneet Dubey
बातों में बनावट तो कही आचरण में मिलावट है
बातों में बनावट तो कही आचरण में मिलावट है
पूर्वार्थ
तुम
तुम
Tarkeshwari 'sudhi'
शोभा वरनि न जाए, अयोध्या धाम की
शोभा वरनि न जाए, अयोध्या धाम की
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
ତୁମ ର ହସ
ତୁମ ର ହସ
Otteri Selvakumar
आज लिखने बैठ गया हूं, मैं अपने अतीत को।
आज लिखने बैठ गया हूं, मैं अपने अतीत को।
SATPAL CHAUHAN
Loading...