मैं ख़ाक से बना हूँ
मैं ख़ाक से बना हूँ, मुझे ख़ाक में मिला दो
खाक में मिला के, मिरी खाक को उड़ा दो।
दरिया हूँ अश्कों का, मुझे सैलाब सा बहा दो
सैलाब सा बहा के, मिरे नाम को मिटा दो।
जहमत किस बात की, अपने जहन में दफना दो
जहन में दफना के, मिरी याद को मिटा दो।
— सुमन मीना (अदिति)
लेखिका एवं साहित्यकार