मैं क्या हूँ
मैं क्या हूँ तुम न समझ पाओगे
जो अगर समझ गए कभी
जिस दिन छोड़ा होगा
उस दिन पर पछताओगे
मैं तुम्हारे लिए खुद को बयां करता हूँ
वरना मेरी तरह
बंद कमरों मे, तकिए को भिगाओगे
मैं वो हूँ,
जो चंद घड़ियों मे जीता था तुमने
अब चाह कर भी कभी
वो मोहसिन न कभी पाओगे
मैं वो हूँ
न पैसे की चाहत थी कभी भी मुझको
पर तुम भी अपनी वो लालच की घाघर न भर पाओगे
मैं वो हूँ
जो मिल जाता है बहुत आसानी से
पर खो जाने पर मुझको न ढ़ूंढ़ पाओगे
मैं वो हूँ
जिसको रुलाकर सब हंसते हैं
जब सो गया, तो आँसू न रोक पाओगे
मैं वो हूँ
जो दर्द लिखता तो है, पर हंसता है
जब मेरा कफन उठाओगे तब भी हंसता ही मुझे पाओगे
मैं वो हूँ
जो चंद सिक्कों से भी हल्का था कभी
हीरों से भी न अब कीमत मेरी दे पाओगे
मैं वो हूँ
जो कभी साथ था अकसर यूं ही
अब तो ख्वाबों से भी रुकसत सा मुझे पाओगे
मैं वो हूँ
जो रो देता था इल्जामों से दबकर
अफसोस अब वो लानत किसे दे पाओगे
मैं वो हूँ
जो सहारा था बना कभी मुश्किल मे
बस याद करना मुझे, मुश्किल से निकल जाओगे