मैं कोई ताश का पत्ता नहीं
मैं
कोई ताश का पत्ता
नहीं
जो तुम उसे
एक खेल समझो और
जब चाहा
उनसे खेलते रहो
उन्हें अपने हाथों में लेकर
जब तक तुम्हारा
मन न भर जाये
पीटते रहो
मैं हूं
अपने मन की रानी
मेरा कोई बादशाह नहीं
कोई एक्का, दुक्की या
तिग्गी नहीं
मैं कोई जोकर नहीं जो
तुम्हें हंसाती रहूं
रिझाती रहूं
तुम्हारा मनोरंजन करती रहूं
तुम्हारा दिल बहलाती
रहूं
मैं कोई सर्कस में चल रहा
तमाशा नहीं
कोई नट नहीं
कोई खिलाड़ी नहीं
तुम भी कोई दर्शक नहीं
हिम्मत है तो
मैदान में आओ
मैं घोड़े पर सवार होकर
आती हूं फिर
तुम्हारी पीठ पर
एक चाबुक लगाती हूं और
घसीटते हुए
कर देती हूं तुम्हें
अपने तंबू से बाहर
फिर पूछती हूं
तुम्हारे दिल का हाल कि
अब बता
कैसा लगा
तेरे जैसा ही जो खेल खेला
मैंने तेरे साथ।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001