मैं कितनी नादान थी
शेर-
तू ही बता
मेरे ख़ुदा
मैं और
करती तो क्या?
गीत-
प्यार में दिल को
दुःख सहना भी
अच्छा लगता था
यह पाकीज़ा
काम है कोई
ऐसा लगता था…
(१)
मैं उसके आगे
सिर न झुकाती
आख़िर अब कैसे
जिसने मुझको
पत्थर मारा
तुझ-सा लगता था…
(२)
इससे पहले
देखा नहीं था
मैंने उसे कहीं
लेकिन वह
जाने क्यों बहुत
अपना लगता था…
(३)
जनम-जनम का
साथ वैसे तो
सपना है फिर भी
उसके होने पर
सब कुछ
सच्चा लगता था…
(४)
मैंने उसको
समझे बिना ही
ख़ुद को सौंप दिया
क्योंकि जो कुछ
मेरा था
उसका लगता था…
#Geetkar
Shekhar Chandra Mitra
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