मैं कहां हूं
जिंदगी उस मोड़ पर है
जहां खुद से बात कर
खुद में उलझकर
खुद ही से सुलझ जाते हैं
ना जाने कैसी है
आज की सांझ
मगर मैं तेरे
ख्यालों की सुनहरी सी
संध्या में खोई हूं
अंधेरा अभी आहट
दे चुका है
मगर नींद कहीं सुदूर
जंगल के इस छोर पर
खड़ी है
जहां हल्की सी पत्तों की
सरसराहट और भैंमिरियो के
शोर से डर कर
सिमट जाती हूं खुद में
और उसी अंधेरे जंगल
में हौले से प्रवेश कर
पैरों को मजबूती से
बिना शोर किए
रखने की जद्दोजहद में
भूल गयी हूं
मैं हूं कहीं। !