मैं कवि हूं
मैं कवि हूं , भावनाओं के समुद्र में बहता, डूबता, उबरता रहता हूं ,
कल्पनाओं के नभ में उन्मुक्त पंछियों की तरह विचरण करता रहता हूं ,
कभी मानवीय संवेदना की अभिव्यक्ति के स्वर बनकर उभरता हूं ,
कभी अंतर्मन की वेदना के आर्तनाद को शब्दों में उकेरता हूं ,
कभी दमन की पराकाष्ठा में विद्रोह प्रेरणा स्फुरित संवाद बन जाता हूं ,
कभी देश प्रेम से ओत् प्रोत् शौर्य उत्प्रेरक काव्य सृजन बन जाता हूं ,
कभी बलिदानी वीरों एवं वीरांगनाओं की शौर्य काव्य गाथा बन जाता हूं ,
कभी शोषण एवं अन्याय विरुद्ध व्यवस्था पर प्रश्नवाचक काव्य बन प्रस्तुत होता हूं ,
कभी प्रेमियों के मधुरिम प्रेमाख्यान का काव्य वर्णन बनता हूं ,
कभी अंतस्थ विरहाग्नि को भावों में पिरोए छंद बनता हूं ,
कभी विसंगतियों पर कटाक्ष युक्त व्यंगपूर्ण रचना बनता हूं ,
कभी जीवनदर्शन तत्वज्ञान का आध्यात्मिक काव्याधार बनता हूं ,
कभी ईश्वर स्तुति काव्यांजलि आधार बनता हूं ,
इस प्रकार, हर आयाम से साहित्य के प्रति हृदयतल समर्पित भाव बनता हूं ,