मैं कविता हूँ
मैं कविता हूँ…
मैं कविता हूं मेरे अंदर
सुख दुख का अदभुद संगम है
मैं कविता हूं मेरे अंदर
हर्ष विषाद का दुर्लभ विलयन है
मैं कविता हूं मेरे अंदर
वाल्मिकी की रामायण है
मैं कविता हूं मेरे अंदर
सूरदास की सारावली भी है
मैं कविता हूं मेरे अंदर
तुलसीदास की मानस है
मैं कविता हूं मेरे अंदर
कल्हण की राजतरंगिणी भी है
मैं कविता हूं मेरे अंदर
कबीरदास का बीजक है
मैं कविता हूं मेरे अंदर
जयशंकर की कामायनी भी है
मैं कविता हूं मेरे अंदर
मैथिलीशरण का साकेत है
मैं कविता हूं मेरे अंदर
बिहारी की सतसई भी है
मैं कविता हूं मेरे अंदर
निराला की अनामिका है
मैं कविता हूं मेरे अंदर
दुष्यंत की साये में धूप भी है
मैं कविता हूं मेरे अंदर
महादेवी कृत यामा है
मैं कविता हूं मेरे अंदर
पंत की चिदंबरा भी है
मैं कविता हूं मेरे अंदर
दिनकर का कुरुक्षेत्र है
मैं कविता हूं मेरे अंदर
माखन की हिमतरंगिनी भी है
मैं कविता हूं मेरे अंदर
सुभद्रा की झांसी की रानी है
मैं कविता हूं मेरे अंदर
सोहन लाल की भैरवी भी है
मैं कविता हूं मेरे अंदर
मीरा की राग गोविंद है
मैं कविता हूं मेरे अंदर
बच्चन की मधुशाला भी है
मैं कविता हूं मेरे अंदर
नीरज का कारवां गुजर गया है
मैं कविता हूं मेरे अंदर
बालकृष्ण की उर्मिला भी है
मैं कविता हूं मेरे अंदर
कवि प्रदीप का ओज है
मैं कविता हूं मेरे अंदर
बंकिम का आनंद मठ भी है
मैं कविता हूं मेरे अंदर
जहां प्रेम,श्रृंगार फलता है
मैं कविता हूं मेरे अंदर
विरह,ओज भी मिलता है
मैं कविता हूं मेरे अंदर
पर्वत सी पीर पिघलती है
मैं कविता हूं मेरे अंदर
ए मेरे वतन पर आंखें नम भी होती हैं
आंखें नम भी होती हैं…
संजय श्रीवास्तव
बालाघाट (मध्य प्रदेश)
23:03:2022