मैं कविता लिखता हूँ तुम कविता बनाती हो
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मैं कविता लिखता हूँ तुम कविता बनाती हो
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उम्र की आधी सदी के पार
लफ्जों से नहीं
बल्कि इशारों में उमड़ता है प्यार
किचन के लिए मेरी पसंद – जरूरतों की
फेहरिस्त बनाते हुए
मेरा सुझाव और सहयोग न पाकर
पावर के चश्मे से
मुझे देखते हुए
जब तुम मुझ पर
तनिक झुंझलाती हो
कागजों के छोटे टुकड़ों की
छांट बीन में मुझको डूबा देख
होले से मुस्कराती हो
बिना कुछ कहे
छोटी इलायची डाल
आधी प्याली चाय
मेरी टेबल पर रख जाती हो
तब तुम मेरे लिए
बिना शब्दों की
गाढ़े प्यार की
कविता बनाती हो ।
तभी मैं कहता हूँ,
मैं कविता लिखता हूँ
तुम कविता बनाती हो।
– अवधेश सिंह