मैं कभी चाँद पर नहीं आता
दिल पे कोई असर नहीं आता
याद तू इस क़दर नहीं आता
रात आती है दिन भी आता है
कोई अपना मगर नहीं आता
चाँद आता है बाम पर अब भी
बस मुझे ही नज़र नहीं आता
सारी दुनिया बदल गई होती
मैं अगर लौट कर नहीं आता
हम नमाज़ें क़ज़ा तो करते हैं
ख़ौफ़ दिल में मगर नहीं आता
मौत शायद इसी को कहते हैं
लौट कर जब बशर नहीं आता
ज़ेर-ए- पा मंज़िलें तो आती हैं
सिर्फ़ अपना ही घर नहीं आता
जब ज़मींपर सुकून मिलजाता
मैं कभी चाँद पर नहीं आता