मैं और मेरी प्रेयसी
मैं राग हूँ , मौन की अनुगूँज हो तुम
मैं गीत हूँ , आवाज़ हो तुम
मैं विश्रांत पथिक हूँ , घनी छाया हो तुम
मैं सूर्य हूँ , मेरी किरण हो तुम
मैं घन हूँ , चंचल चपला हो तुम
मैं नीरज हूँ , नलिनी हो तुम
मैं नीर हूँ , मेरा उत्स हो तुम
मैं अलिंद हूँ , मंजरी हो तुम
मैं विरह की वेदना हूँ , मिलन का संकेत हो तुम
मैं सौंदर्य का दूत हूँ , अभिसार की प्रेरक हो तुम
मैं कवी हूँ , मेरी कल्पना हो तुम
मैं प्रणय की प्यास हूँ , प्रेम की सजल सरिता हो तुम
मैं प्रकृति का चितेरा हूँ ,स्वयं प्रकृति हो तुम
मैं प्रश्न हूँ , उत्तर हो तुम
मैं उत्कंठित यायावर हूँ , भाव – भुवन हो तुम
मैं चातक हूँ , स्वाति घटा हो तुम
मैं विस्तृत नभ हूँ , पल्लवधारी वसुधा हो तुम
मैं युगों युगों से तेरे शाश्वत श्रृंगार पे नत प्रणत हूँ
निज में कांत समेटे मेरी प्रेयसी हो तुम
मैं स्वयं एक निर्जन हूँ , निर्जन में फैला निनाद हो तुम
मैं अप्रतिहत बहने वाला समीर हूँ ,
अनवरुद्ध वारिद तरंग हो तुम
मैं घनीभूत चिंतनशील हूँ ,
मेरे मानस – सागर में चलने वाली लोल- लहर हो तुम
मैं तेरे छाविजाल में फंसा विहग हूँ ,
रूप – माधुर्य समेटे तरुणी हो तुम
मैं जड़ हूँ , गतिमान हो तुम
मैं अचल हूँ , चलायमान हो तुम
मैं छोर का अंत हूँ , प्रारम्भ हो तुम
मैं ‘आज़ाद’ परिंदा , मेरी असीम उड़ान हो तुम |
द्वारा – नेहा ‘आज़ाद’