मैं और मेरी दशा
क्या बता दूँ मैं तुम्हें , एक जरा सी आश मे हू
खो गया खुद मे कहीं ,मुकुर की तलाश में हूँ
नकाबों का दौर है ये , झूठ ने रौंदा हुआ है
सत्य से परिचय करा दो , मैं अभी आभास मे हूं
खीच कर उँगली से अपनी ,कोई तो दे दे किनारा
मैं समंदर की लहर से डूबते आवास मे हूं
डगमगाए पग भले ही ,तुम मुझे न छोड़ना
थाम लेना बांह मेरी ,मैं इसी विश्वास मे हूँ
जो ना सुनी तुमने पुकारें ,आज मेरे चीखने की
फ़िर कभी न कह सकोगे, मैं तुम्हारे पास में हूं
मन मेरा जो टूटता है, उत्साह से भर दो इसे
प्रतितोष तो न दे सकूंगा , मैं अभी ह्रास मे हूं
देखकर न सोचना ये ,क्यों मैं इतना मौन रहता
फ़िर से न मानव बनूँ मैं ,बस इसी अरदास मे हूं
~poetry by satendra