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15 Jun 2023 · 1 min read

“””” मैं और मेरी तन्हाई “”””

हां तन्हाई…. ‌ जरूरी है जीवन में
तभी तो स्वयं से रू-ब-रू हो पाती हूं मैं
तभी तो अपने अंतर्मन को सुन पाती हूं मैं
अन्यथा तो अपनी आत्मा को सांसारिक शोर में लिप्त पाती हूं मैं

वह(आत्मा) फिर स्वयं को बिल्कुल अकेला पाती है
क्योंकि मुझे वह तब भौतिक चकाचौंध में लुप्त पाती है
जो उसे तनिक भी नहीं भाती है

हां तन्हाई…… जरूरी है जीवन में
तभी तो मैं अपनी रुह से अंतर्मुख हो पाती हूं
तभी तो सही और ग़लत का सही अर्थ समझ पाती हूं
अपने को उसे समर्पित कर पाती हूं
र तभी तो फिर ईश्वर को अपने और समीप पाती हूं

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