मैं और तुम मिलकर हम बन जाते
हम दोनों ही मुकम्मल हो जाते, मैं और तुम मिलकर हम बन जाते।
पर ये क्या तुम तो हम निकले, मेरी जरूरत नहीं तुमको,
तुम खुद में ही मुकम्मल निकले।
तुझसे मिलकर भी मैं ,मिल ना पायी ,
रही अधूरी मुकम्मल हो ना पायी।
हर पल तूने ये एहसास कराया ,
मैं हूं जीवन का तेरे काला साया ।
तूने हर पल मुझको दर्द दिया ,
मेरे प्यार को धन दौलत से तोले दिया।
तुम मेरे ना बन पाए, या ना बना पायी मैं तुमको अपना,
हर कोशिश की मैंने तुमको पाने की,
पर तुमने कम ना होने दी दूरी हम दोनों की।
कहते हैं प्यार से बदल जाता है हर इंसान ,
पर जो तोले दौलत से प्यार ,उसे कैसे जीते प्यार।
किस संजोग में ये संयोग हुआ ,मैं हार गई तू जीत गया ।
तेरी नफ़रत ने मेरे दिल को भी नफरत से सराबोर किया।
तुझको पाने की जिद्द में मैंने,.अपना स्वाभिमान भी त्याग दिया,
पर तू तो मेरा था ही नहीं ,जिसके लिए मैंने जग त्याग दिया ।
देर हुई पर मैंने अब जान लिया , तू मेरा नहीं है ,
जा तुझको खुद से आजाद किया।
अब मैं अपना अस्तित्व बचाऊंगी,
मैं भी खुद को अकेले ही मुकम्मल बनाऊंगी।
सोचा था मैंने मैं और तुम मिलकर हम बन जाते हम दोनों ही मुकम्मल हो जाते।