मैं और तिरुमाला के “बालाजी”
मैं और तिरुमाला के “बालाजी”
मेरा भाई और परिवार ने भगवान वेंकटेश्वर के पहाड़ी मंदिर तिरुमाला का कई बार दर्शन किया औऱ मुझे भगवान बालाजी की महिमा बताई. मुझे यात्रा का विवरण, प्रणाली और दर्शन होने में लगने वाला समय एवं दर्शन प्रथा से आलोकित किया.
मेरा उत्तर था, मैं ऐसे मंदिर में जाने वाला आखिरी व्यक्ति हूं, जहां किसी को भगवान के दर्शन हेतु द्ववारी मूल्य एवं घंटो इन्जार करना पड़ता है.
भगवान को श्रद्धा एवं भक्ति अर्पित करने और पंक्ति में खड़े होने के लिए पैसा मैं कदापि नहीं देता. और इस लिए भाई को कह दिया, अगर और जब यह भगवानजी मुझे देखना चाहे, तो वह मेरे शहर में जहाँ मैं रहुँ स्वं चल कर आयें.
मेरी बात सुन कर बहुत गुस्से में उनकी टिप्पणी थी, “आप क्या पगलो के तरह बात कर रहें हैँ, बुद्धि भृष्ट हों गई क्या?
पुरी तरह सठिया गये हैँ, उहं! वेंकटेश्वर जी तिरुमाला छोड़ कर, आप से मिलने आएंगे!
मैने कहा, तुम तो जानते ही हों, मैं वरदानित मनवा हूँ, ईश का मेरे ऊपर बहुत ही अनुकम्पनित् आशीष है.
भाई बोला : हाँ मैं जानता हूँ, हों सकता है, बालाजी आप को सपने में दिखाई दें, कियूं कि सपने आप के दिल के इच्छाओं को दिखाती है.
ख़ैर समय बीतता गया साल 2006 आ गया तिरुमाला के बालाजी मेरे तथा भाई एवं परिवार के बीच एक चुटकी वाली हास्यास्पद बन गई, तब तक मैं इंदिरापुरम, गाजियाबाद आ गया था.
फरबरी के महीने का 18 या 19 तिथी को मेरे एक दक्षिण भारतीय मित्र, जो कि केंद्र सरकार में, उच्य पद पर नियुक्त थे, फोन आया तिरुमाला के मलयप्पा स्वामी तथा उनकी दिव्य पत्नियां दिल्ली में आज पहुंच गये हैं औऱ दिनांक 23 फरबरी को उनकी विवाह का आयोजन हैं, क्या आप आना चाहेंगे!
है भगवान ! नेकी औऱ पूँछ पूँछ!
यह क्या एक मजाक है !
मैने जल्दी ही अपने मन कि गति रोक कर मित्र से तुरंत हाँ कर दी. उन्होंने कहा ठीक हैं, कियूं कि यह उत्सव अति ही विशेष हैं जिस में, मन्त्रीगण एवं सरकार उच्य अधिकारी आयेंगे, अतः पास द्वारा एंट्री हैं, आपको कितने पास भेजू. मैंने चार (4) पास मांगे, उन्होंने ओके कर दिया औऱ साथ अगहा कर दिया शादी का समय 9 बजे रात्रि हैं, आप 7.30 बजे अपना स्थान ग्रहण कर लेना, 8 बजे से VVIP एंट्री शुरू होंगी, उस समय से किसी को एंट्री नहीं मिकेगी. आप सब अपना पहचान पत्र, लें के जाना, बिना पहचान पत्र के एंट्री नहीं मिलेगी.
बात ख़तम होने के बाद मैं करीब 2 घंटे तक एक अज्ञात शून्यता में खो गया.
मन अति स्तम्भहित एवं हर्षित, बुद्धि किसी भी निश्चित निर्णय से निष्कर्म , एवं आत्मिक ह्रास की स्तिथी में. क्या सत्य औऱ क्या मिथ्या.
मन, हृदय, बुद्धि एक अत्यंत दुविधा स्तिथी के प्रचंढ़ता में उथल पथल.
सिर्फ दर्शन निमंत्रण नहीं! भगवान के विवाह समारोह में सम्मिलित का निमंत्रण है! जहाँ भगवान का उनकी दिव्य पत्नी के साथ विवाह सभी अनुष्ठानों के साथ किया जाना है!
कुछ समय बाद मन को स्थिर कर
मैने अपने भाई को फोन किया औऱ मल्याप्पा स्वामी के दिल्ली में आने का समाचार दिया ….. औऱ भाई ;
हैं भगवान!
भाई ने पूछा: कहा हों.
मैंने कहा : ऑफिस में
भाई बहुत जोर से हँसा फिर कहा : ओके घर जाओ, फोन काट दिया.
घर पहुंच कर घर वालों से बोला औऱ वहाँ भी सब ने मुझे एक अजीब नज़र से घुरा, जैसे मेरा दिमाग़ ख़राब हों गया हों. मैंने पूर्ण रुप से इस विषय पर मौन धारण कर ली.
मेरे मित्र ने मुझे पास भेज दिया.
२३ फरवरी को लंच के बाद मैं कार्यक्रम स्थल के लिए निकला और ३.३० बजे पहुँच गया. कियूं की मैं बहुत ही उत्तेजित एवं अस्थिरता अनुभव कर रहा था, दर्शन के लिये.
स्थान धौला कुआं के पास वेंकटस्वरा कॉलेज में . गेट के सामने प्रवेश करते हुए कॉलेज की इमारत है और दाहिनी ओर बहुत बड़ा मैदान है जहाँ विवाह कार्यक्रम होना था. कम से कम 10000 कुर्सियाँ बिछि हुई व मंडप व्यवस्था का कार्य प्रगती पर था.
खैर, दोपहर का समय था इसलिए मैं कॉलेज की लॉबी में गया। लॉबी बड़ी थी; वहाँ बहुत दक्षिण भारतीय परिवार के लोग बैठे थे। कुछ समय बाद मैंने चिन्हित किया कि लोग एक गैलरी में चुपचाप श्रद्धा के साथ प्रवेश कर रहे हैं और फुसफुसाते हुए बाहर आ रहे हैं. बगल में बैठे परिवार, जो मेरे अंदर आते ही आये थे, उठ गये और मैंने किसी तरह अनुमान लगाया कि वे भी गैलरी में प्रवेश करेंगे, तो मैंने पूछा, वहाँ क्या है: उन्होंने उनके कानों को छुआ और श्रद्धा भाव से कहा, मल्याप्प स्वामी बालाजी. मेरे शरीर में एक सिरहन की लहर छा गई.
मैं भी उनके साथ चल पड़ा. गैलरी के दो कमरों से गुजरने के बाद, तीसरे में मलयप्पा स्वामी अपनी पत्नियों के साथ दरवाजे से सिर्फ दो फीट अंदर विराजमान हैं , मेरे साथ के परिवार सम्मान में हाथ जोड़कर श्रद्धा भाव से खड़े शांत मन से दर्शन में लीन हों गये.
मैं ! बस साथ खड़ा था, विस्मय, शांत, एवं आश्चर्य भाव से. कोई प्रार्थना नहीं, कुछ नहीं, कुछ नहीं. मन भाव हीन, संज्ञा हीन, विचार हीन सम्पूर्ण स्तब्धता .
कोई भीड़ नहीं, कोई धक्का नहीं , पूरी तरह से शांत, सौम्य, एक अद्भुत विचार रहित, शब्द रहित मन स्तिर भाव से जड़ित हो गया, कुछ समय बीत गया, मेरे साथ के परिवार शायद चलने को हुये, तब मैं होश में आया और फिर मैं मुस्कुराया और चुपचाप प्रणाम किया औऱ कहा, तो आप आ गए. ?? धन्यवाद. औऱ आप ने असम्भव को सम्भव बना दिया.??
लॉबी में वापस , आश्चर्य और अविश्वास के साथ बैठ गया.
यह क्या औऱ कियूं हो रहा है, फिर अचानक मुझे एहसास हुआ कि मैंने प्रार्थना नहीं की और न ही कुछ मांगा, मैं फिर से वापस गया. अब मैं अकेला था, आंखें बंद कर, सिर श्रद्धा से नत कर प्रार्थना करना चाहता था, आह! कुछ नहीं, कुछ नहीं और कुछ नहीं, मन से कोई प्राथना नहीं आ रहा है, पर मन शांत, चित शांत, बुद्धि स्तिर, एक अद्भुत स्थिरता, कुछ समय बाद मैंने स्वं से कहा से , तुमसे प्राथना तो हुआ नहीं, तो मांग ही लो कुछ…. तब मैंने उनसे सभी को आशीर्वाद दें जिन्हें मैं जानता हूं और उन सभी की मदद करें जिन्हें मदद की जरूरत है। मेरे लिये मैं आपके क्या मांगू! आप आये दर्शन हुआ यही बहुत है .
बाहर आया, तब तक भव्य लड्डू प्रसाद
आ गये थे औऱ 25 रुपये प्रत्येक के हिसाब से बिक रहा था, चार मांगे, उन्होंने मुझे दो दिया. मैंने बहुत बिनती, काम नहीं हुआ. जो परिवार सहित आये थे समझदार हों गये, एवं परिवार के सभी लाइन में लग गये. जिस परिवार के चार थे, उन्होंने 8 लड्डू प्राप्त किये.
अब बाहर कुर्सी संभाल ली औऱ वैठ गया. प्रसाद लड्डू की महक अति तीव्र एवं लोभनीय थी, अपने को रोक नहीं पाया, थोड़ा थोड़ा खाते खाते दोनों खा गया. पानी पिया. फिर गलती महसूस हुई, घर के लिये तो बचा ही नहीं.
मेरे साथ एक परिवार के चार सदस्य बैठे थे, मैंने उन से बिनती की, औऱ बताया ; मैं परिवार न ला सका. वह मान गये औऱ उनको मैने कहा अब आप तीसरी लाइन से लें.
भाग्यशाली हूँ…. उस परिवार बे मुझे 8 प्रसादी लड्डू ला दिया.??
विवाह समारोह में बहुत मन्त्रीगण औऱ उच्य अधिकारी आये. इतने लोग होने के बाद भी पूरा स्तान शांत एवं सौम्य था.
मैंने अपने को बहुत ही धन्य एवं भाग्यशाली महसूस किया. दूसरे दिन जब मैंने प्रसाद बाँटे, सब आश्चर्य हों गये.
ईश के महिमा के वर्णन के शब्द मेरे पास नहीं….
सिर्फ दो शब्द है मेरे पास…
भाग्यशाली व वरदानित हूँ; ईश कृपा से ??