मैं एक लड़की हू
मैं एक लड़की हू, मेरी अपनी कोई ख्वाहिशे नही है?
अपना कोई वजूद नही है?
मै एक लड़की हू!!
जन्म लिया तो पिता जी के कंधे पर बैठी
बड़ी हुई तो भाई ने हाथ थाम लिया
जैसे ही युवा अवस्था ने दस्तक दिया,
किसी अजनबी के हाथ में सौपने की बात चली!
खुद काभी अकेले न चल सकी
पगडंडियो को कभी महसुस नहीं किया
मै एक लड़की हू!
मै कभी घर की खुशी हुआ करती थी
आज सब के गम का कारण बन गई हू!
मुझे पराये घर मे भेजने की जद्दोजहद लगी है
मेरा कोई घर है भी? ये सवाल मै करने लगी!
मै एक लड़की हू!
आस्मां के रंग देखना चाहती हू
उनमे रंग भरना चाहती हू
खोल अपने पंखो को उड़ना चाहती हू
खुद से सब महसूस करना चाहती हू
कंधे का बोझ नही सिर का ताज बनना चाहती हू
मै एक लड़की हू!
अपने सपनो को जीना चाहती हू
अपने किताबों के पन्नों में रंग भरना चाहती हू
खुद से उठ कर मै चलना चाहती हू
तारों के जैसी मै चमकना चाहती हू
सब की खुशी बनना चाहती हू
मै एक लड़की हू!!