मैं एक महल हूं।
मैं एक महल हूं
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क्या मंदिर क्या मस्जिद क्या गिरजाघर गुरुद्वारा।
, ईट पत्थर का बना है महल, जिसमें लगा
सीमेंट गारा ।।
मैं महल हूं,जो भी मुझे बनवाते, शांति सुकुन स्वयं रहते।
निज विचार निज इच्छा से, कोई मंदिर,कोई मस्जिद, कोई गुरूद्वारा कहते।।
ईंट पत्थर रेत सीमेंट का मैं एक पहल हूं
क्यों बांटता है मुझे मुरख,मैं एक महल हूं।।
जो भी आते मुझ द्वार पर ,उनका मैं सेवक हूं।
जाति पाती से ऊपर उठ,मैं तो सबका देवक हूं।।
जो भी आते, हृदय राख मन विश्वास,
पुर्ण कर इच्छा उनके,सुख शांति देता खास।
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