मैं एक ख्वाब हूँ
यह हकीकत है, कि में इक ख्वाब हूँ,
आत्मा मेरी नही, और में लाचार हूँ,
चल रहा हूँ जिन्दगी के रास्तो पर,
कदम कदम बढ़ता,में अनजान हूँ !!
कितना सकून मिलेगा जब में
गहरी नीद में जाकर सो पाऊँगा ,
जिन्दगी के रोजाना के झमेलों से
तब पूरा आराम मिल पायेगा !!
कसक बस इतनी हे कि हरि
का दीदार इक बार हो जाये,
उस के बाद दुनिया में चाहे
कुछ मिल पाए या न मिल पाये !!
कवि अजीत कुमार तलवार
मेरठ