मैं एक आम आदमी हूं
मैं एक आम आदमी हूं
मेरे जीवन का कोई मूल्य नहीं
कभी हवाईअड्डे की पर छत
मेरी छाती पर टूटती है
और मैं अपनी टैक्सी में बैठा ही
अंतिम साँस लेता हूँ
कभी राह चलते
प्रचार का होर्डिंग बोर्ड
गिरने से मारा जाता हूँ
कभी सुरक्षित माने जाने वाली ट्रेन में
बर्थ गिरने से मेरी मौत हो जाती है
ट्रेन हादसे में
मेरी जान चली जाती है
तो, कभी पुल गिरने से
मारा जाता हूं, कभी इमारत
मैं कोई जिंदा शरीर नहीं,
मेरा वज़ूद तो बस संख्या भर है
मृतकों की संख्या बढ़कर
अब तक कितनी हुई..
वाली हेडलाइन हूं मैं
सरकारी गोदामों में
धूल फांक रही फ़ाइलों में
लाल स्याही से लिखा नाम हूं मैं
मीडिया के फ़ुरसत के समय
चर्चा का एक विषय मात्र हूँ मैं
चुनाव के दौरान
नेताओं का आराध्य
चुनाव बाद भूला बिसरा अस्तित्व हूँ मैं
हिमांशु Kulshrestha