मैं उसकी निग़हबानी का ऐसा शिकार हूँ
मैं उसकी निग़हबानी का ऐसा शिकार हूँ
बरसों से रिहाई के लिए तलबग़ार हूँ
वो मुझसे निभाता है दुश्मनी बस इसलिए
मैं अपने आप की क्यूँ इतनी तरफ़दार हूँ
कहता है वो कि मैं नहीं क़ाबिल हूँ प्यार के
दामन मेरा नापाक़ है,मैं दाग़दार हूँ
अश्कों का दरीचा सा बना रखा है दिल में
रोती मैं उसमें बैठ के अब ज़ार – ज़ार हूँ
जिसकी खताएं क़ाबिल-ए-माफ़ी नहीं,वही
कहता फिरे है लोगों से, मैं गुनाहगार हूँ