मैं उनकी ज़फाएं सहे जा रहा हूॅं।
गज़ल
122/122/122/122
मैं उनकी ज़फाएं सहे जा रहा हूॅं।
वफ़ा पर वफ़ा मैं किए जा रहा हूॅं।1
दिये दूसरों को सदा दर्द तोहफें,
वही कर्म फल अब लिए जा रहा हूॅं।2
है कांटों भरा रास्ता पर न गम है,
मैं मंजिल को अपनी बढ़े जा रहा हूॅं।3
ये गम दास्ताने है लंबी बहुत ही,
अभी अनवरत मै लिखे जा रहा हूॅं।4
जहाॅं मिल रहा है मुझे प्रेम प्याला,
मैं ‘प्रेमी’ लिए औ’र पिये जा रहा हूॅं।5
……..✍️ सत्य कुमार प्रेमी