मैं उड़ना चाहती हूं
घुटता है दम इस पिंजरे में
मैं उड़ना चाहती हूं, मां
अब हरी-भरी उन वादियों में
मैं घूमना चाहती हूं, मां…
(१)
मदमस्त हवा जब चलती है
तब मेरी रूह मचलती है
पर्वत के उस पार की दुनिया
मैं देखना चाहती हूं, मां…
(२)
ये जंगल भेड़ियों का घर है
बेमौत मारे जाने का डर है
फिर भी कुछ जोख़िम लेकर
मैं सीखना चाहती हूं, मां…
(३)
बस सुरक्षा या सुविधा नहीं
मुझे चाहिए आज़ादी भी
कैसा होता खुला आसमान
मैं जानना चाहती हूं, मां…
(४)
तुम्हारी तो आधी ज़िंदगी
बीत गई रोक-टोक में ही
बंदिशों से बिल्कुल बाहर
मैं निकलना चाहती हूं, मां…
#Geetkar
Shekhar Chandra Mitra
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