मैं इंसान हूं !
मैं इंसान हूं,
खुदा की पहचान हूं,
फरिश्तों का अरमान हूं।
मैं इंसान हूं।
मैं जो चाहूं कर सकता हूं,
हर संकट को हर सकता हूं।
अपनी पर जो आ जाऊं मैं,
दरिया का रुख बदल सकता हूं
मैंने समुद्र पर बांध बांधा था,
पहाड़ों कंदराओं को लांघा था।
जो उत्पाद बढ़ा हथधर्मियों का,
रण में मैंने सबको संहारा था।
मैं भगीरथ का वंशज हूं,
गंगा धरा पर जो लाए थे।
मैं भरत का उत्तराधिकारी,
धर्म की ध्वजा जो लहराए थे।
मेरे पुरखों ने सदा,
वीरता का अध्याय लिखा,
हर मुश्किल को हंस कर पार किया,
वचन के लिए जीवन तक वार दिया।
मैं अंधियारे में चिराग बन जलता हूं,
मोम बन मुल्क की खातिर गलता हूं।
मुझपर विधाता को भी अभिमान है,
मुझसे ही धरा पर उसका सम्मान है।
मैं सृष्टि में जीवन का मान हूं,
खुदा का प्रतीक औ परिधान हूं।
मैं वसुधा की उत्तम संतान हूं,
मैं इंसान हूं।