मैं आत्मनिर्भर बनना चाहती हूं
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शीर्षक – मैं आत्मनिर्भर बनाना चाहती हूं
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हमारे जीवन में बहुत कुछ ऐसा होता है जो समय के साथ-साथ सब कुछ बदल जाता है। जीवन में हम सभी के साथ प्रतिदिन एक ही जिंदगी होती है और उसे जिंदगी को हम रोजाना उसी तरह जीते हैं। बस कुछ समय होता है जो सब कुछ बदल जाता है और हम इस समय के साथ-साथ कहते हैं सब कुछ बदल गया। मेरा भाग्य और कुदरत के रंग मैं आत्मनिर्भर बनाना चाहती हूं। जिंदगी के साथ-साथ हम सभी सोचते हैं की कल हमारा होगा और मैं जिंदगी में आत्मनिर्भर बनना चाहती हूं परंतु हम सभी अपने अहम और सोच के साथ जीते हैं। मेरा भाग्य आप कुदरत के रंग एक सच के साथ-साथ सब कुछ बदल जाता है परंतु हमारे अभिलाषाएं मैं आत्मनिर्भर बनना चाहती हूं एक नारी विशेष के रूप में एक सोच हैं। हम सभी पुरुष प्रधान समाज में रहते हैं। आधुनिक समय और समाज में रहते हैं। परन्तु आज भी हम और हमारी सोच शारीरिक संबंध और रिश्ते नाते सांसों के सच कहते हैं।
राकेश और अनीता जीवन के साथ साथ रहते हैं। और जीवन के बीते पलों को सोचते हैं। अनीता की सोच अपने बचपन की यादों में होती है और राकेश से वह कहती है तुम्हें वह दिन याद है जब हम और तुम अपने माता-पिता से छुप-छुप कर मिला करते थे और तुम मेरे लिए आइसक्रीम भी लाया करते थे और तुम मुझे कहती थी कि तुम कुछ अच्छा पढ़ लो जिससे तुम कुछ बन सको और मैं तुमसे कहती थी मैं आत्मनिर्भर बनना चाहती हूं और देखो मैं पढ़ लिखकर एक अच्छे पद पर बैंक में मैनेजर बन गई। तब राकेश कहता है मेरा भी तो सब कुछ बदल गया जब मैं तुम्हें देख सकता था तब हम तुम बहुत खुश थे और हमारे जीवन में जो दो बच्चे थे रानी और राजा वह भी तो आधुनिक समाज के साथ-साथ हमारे बुढ़ापे में अपनी मर्जी के साथ जीवन जी रहे हैं।
अनीता रहती है मैं आत्मनिर्भर बनना चाहती हूं और आज भी मैं आत्मनिर्भर हूं क्योंकि मेरे जीवन में मेरी जमा पूंजी मेरे बुढ़ापे में और तुम्हारे लिए सहयोग कर रही है राकेश कहता है सच बात तो यह है कि मेरी आंखें खो जाने से मेरा सब कुछ बदल गया अब ना मैं तुम्हें घुमा सकता हूं और ना ही मैं कोई वाहन को चला सकता हूं तब अनीता राकेश को अपनी बाहों में भरकर कहती है। तुम अभी राजा और रानी के बारे में सोचते हो। राकेश कहता है दोनों मेरे बच्चे हैंऔर हमने पैदा करे थे। अनीता रहती है तुम भी कितने नादान हो तुम्हारा सब कुछ बदल गया और मैं आत्मनिर्भर बनना चाहती हूं क्योंकि राजा अपनी प्रेम का के साथ शादी करके हम दोनों मां-बाप को छोड़कर हमारी परवाह न करते हुए अपनी जिंदगी जी रहा है और तुम्हारी आंखें जाने के साथ तुम्हारा सब कुछ बदल गया। अनीता मैं तो रानी की फिक्र करती हूं की रानी ने अपने जीवन का फैसला अनिल के साथ लेकर कुछ अच्छा नहीं किया और वह आज भी किराए के मकान में रहकर तीन-तीन बेटियों के साथ गुजारा कर रही है। उसकी हालत मुझे अच्छी नहीं जाती है।
राकेश कहता है तुम आत्मनिर्भर बनना चाहती थी तब तुमने जीवन में मेहनत और लगन करी परंतु रानी को हमने बहुत समझाया कि तुम आत्मनिर्भर बन जाओ तब जीवन में आगे कदम बढ़ाना क्योंकि आज आधुनिक युग में केवल धन की ही माया है ना इश्क ना मोहब्बत ना प्रेम यह तो केवल कुछ दिन और कुछ सालों तक कायम रहते हैं। अनीता वह तो तुम्हारी आंखें नहीं है आज बहुत दुख है परंतु वह दिन तुम भूल गए जब तुम मुझे पसंद कर कॉलेज से भगाकर ले जाने को कहते थे राकेश के चेहरे पर मुस्कान आती है और वह अनीता से कहता है तुम तो अभी भी मेरी आंखों में बसी हों। अनीता राकेश की आंखों को चूम लेती है और उसकी आंखों में नमी को राकेश हाथों से देखता है। तुम रो रही हो अनीता नहीं नहीं यह तो मेरे खुशी के आंसू हैं जो तुम मेरे साथ हो।
कॉलेज के समय से ही मैं आत्मरावर बनना चाहती हूं ऐसा मैंने सोच रखा था और मैं आत्मनिर्भर बन गई परंतु राकेश के गोद में लेकर अनीता उसके बालों में हाथ करते हुए कहती है हमने अपने बच्चों के बारे में क्या यही भविष्य सोचा था कि हमारा सब कुछ बदल जाएगा। राकेश कहता है भाग्य और कुदरत के रंग एक सच के साथ होते हैं और समय के साथ-साथ बच्चे अपने जीवन में अपने जीवन की राह सोचते हैं तब गलत क्या है अनीता क्या बच्चे हम ऐसे दिनों के लिए पैदा करते हैं राकेश लड़खड़ाती हुई आवाज में कहता है। शायद आजकल के बच्चों का यही फैशन है वह तो तुम्हारी आत्मनिर्भरता थी जो हमारे पास कुछ जमा पूंजी है जिससे हम दो वक्त की रोटी खा सकते हैं वरना बच्चों ने तो अपनी मर्जी के साथ हमें जीते जी मार दिया है।
अनीता और राकेश पार्क में बैठी हुई एक दूसरे के हाथ में हाथ डाले हुए बैठे हैं तभी एक आवाज अनीता के कानों में गूंजती ती है। आइसक्रीम ले लो आइसक्रीम तब अनीता राकेश से कहती है आज तुम मुझे आइसक्रीम नहीं खिलाओगे राकेश अपनी जेब से पर्स निकलता है और आइसक्रीम वाले को आवाज लगता है आइसक्रीम वाले भैया दो आइसक्रीम देना और दोनों पार्क में बैठे आइसक्रीम के साथ-साथ बीते कल के विषय में सोचते हैं। और राकेश कहता है समय के साथ-साथ मेरा सब कुछ बदल गया तब अनीता रहती है चिंता क्यों करते हो मैं आत्मनिर्भर बनना चाहती हूं और आज भी मैं कुछ ना कुछ काम करके तुम्हारे जीवन का ख्याल रखूंगी क्योंकि सच तो यही है पुरुष कमाता है और घर की पत्नी खाती है। परंतु मेरा भाग्य और कुदरत के रंग एक सच को भी तो कह रहे हैं शायद हमारी जिंदगी में बच्चों का पालन पोषण करना ही लिखा था।
और दोनों आइसक्रीम खाते हुए पार्क से अपने घर की ओर बीते हुए कल को याद करते हुए चले जा रहे हैं अनीता और राकेश एक दूसरे को आज भी बहुत प्यार करते हैं जबकि राकेश की आंखें जाने के बाद अनीता के जीवन में सब कुछ बदल गया। परंतु अनीता को इस बात का फक्र था। कि वो आत्मनिर्भर बनकर आज जीवन जी रही थी। अनीता राकेश से कहती है मैं आत्मनिर्भर बनाना चाहती हूं। यही तो मेरी जिद थी और तुमने मेरा हमेशा साथ दिया तभी तो हम दोनों आज सही सलामत जीवन जी रहे हैं वरना हमारे बच्चों ने तो हमें जीते जी मार ही दिया है। राकेश और अनीता अपने जीवन के रंग मंच पर बीते कल की यादों के साथ घर चले जाते हैं।
मेरा भाग्य और कुदरत के रंग एक सच कहता है की राकेश का सब कुछ बदल गया और अनीता में आत्मनिर्भर होना चाहती हूं के साथ अपने भाग्य को एक सच के रूप में देखती है और बच्चों को उनकी परवाह नहीं है और वह अपनी जिंदगी जीना चाहते हैं हमारी कहानी में पाठकों से यह पूछना चाहता हूं की माता-पिता बच्चों को परवरिश करके बड़ा करते हैं तब उनका आधुनिक युग में क्या फर्ज बनता है। सच तो केवल मेरा भाग्य और कुदरत के रंग एक सच होता है।
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नीरज अग्रवाल चंदौसी उ.प्र