मैं आज जो भी हूँ
मैं आज जो भी हूँ
वो मेरे पापा की ही
तो कमाई है।
क्योंकि ख़ुद धूप में तपकर
मुझे मेरी मंजिल बताई है।
मैं जब भी चैन से सोता था
वो दर ब दर भटकते थे।
ना जाने मेरी खातिर कितनो
से ही लड़ते थे।
मेरी हर मुश्किल को पापा
ने ही झेल लिया पर्वत बन खड़े थे ,
जब भी मुश्किलों ने मुझे घेर लिया।
कई बार पापा ने मेरी खुशियों के
लिए खुद की इच्छाओं को दबाया हैं
ना जाने मेरी खातिर कितनी बार
खुद को समझाया है।
हर बार उन्होंने त्याग किया है
हर बार धूप में तपकर भी
मेरा हर सपने को आबाद किया है
आज मैं जो भी हूँ वो पापा
की ही तो कमाई ही
खुद को धूप में तपाकर
मुझे मेरी मंज़िल दिखाई है।
मैं आज शीश झुकाता हूँ
पापा के। बलिदानों पर
उनके इन बलिदानों से ही
तो वज़ूद बन पाया है।